शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

कमबख्त होंठ मेरे दिल का साथ नही देते। त्रिवेणी की कोशिश!

हाल-ऐ-दिल , ग़म-ऐ -जहाँ
और मेरे मुस्कुराने की आदत,
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कमबख्त होंठ मेरे दिल का साथ नही देते।

6 टिप्‍पणियां:

  1. कमबख्त होंठ मेरे दिल का साथ नही देते।

    हाल ए दिल कैसा भी हो मुस्‍कुरा ही देते हैं ।

    वाह क्‍या कहने ।

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  2. दिल से कहो अब और न सताया करे...
    कोतुहल में कितना कुछ कह गये आप...

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  3. बहुत उम्दा बात कह गये...कमबख्त होंठ मेरे दिल का साथ नही देते।

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  4. खुद की लिखी ये पंक्तियाँ याद आयी-

    भला बेचैन क्यों होता, जो तेरे पास आता हूँ
    कभी डरता हूँ मन ही मन, कभी विश्वास पाता हूँ
    नहीं है होंठ के वश में जो भाषा नैन की बोले
    नैन बोले जो नैना से, तरन्नुम खास गाता हूँ

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. आप सभी का पसंद करने के लिए धन्यवाद. मेरी कोशिश रहेगी मैं इसी तरह लिखता रहूँ और बेहतर सीखता रहूँ.

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