दहशत की आग में,
मैंने हिंदुस्तान को जलते देखा है,
हर एक वार से इसको लड़ते देखा है,
मरहम लगाने को कोई नहीं,
हाँ सियासी रोटियां सेकते देखा है,
चंद महीने में ही इसके ज़ख्मो को,
फिर हरा होते देखा है,
इंसानों को लाशो में तब्दील, होते देखा है,
नफरत की आग में लाखों घरो को, जलते देखा है,
जली हुई राख से,
हिन्दुस्तान के चमन को, फिर खिलते देखा है,
हर काली रात के बाद,
एक नई सुबह को, होते देखा है,
मैंने हिन्दुस्तान को जलते देखा है.....
मैंने हिन्दुस्तान को जलते देखा है.....
निदा अर्शी....
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