कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
मंगलवार, 18 नवंबर 2008
मुझे ख़तावार लिखिए! हाल ऐ दिल!
किसी को गुल ऐ आसमान लिखिए,
किसीको गुल ऐ बहार लिखिए,
पर जिसे तलब हो मुहब्बत की,
उसे दोस्तों, गुनहगार लिखिए।
गुज़ार देते हैं, सभी ज़िन्दगी यूँ तो अपनी,
कभी हँसते हुए, कभी रोते हुए,
पर जो इश्क की खातिर, आंसू बहाए,
उसकी ज़िन्दगी को भी, अश्क ऐ यार लिखिए।
मुहब्बत तो करता है, भँवरा भी, गुलों से यूँ तो,
जल जाता है, परवाना भी, शमा की चाहत में कहीं,
हूँ मैं भी गुनाहगार, इस खता का यारों,
सोचते क्या हैं? मुझे भी ख़तावार लिखिए।
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हूँ मैं भी गुनाहगार, इस खता का यारों,
जवाब देंहटाएंसोचते क्या हैं? मुझे भी ख़तावार लिखिए।
bahut khoob.......!
bahot khub likha hai aapne ,,wah bahot maza aaya..
जवाब देंहटाएंगुज़ार देते हैं, सभी ज़िन्दगी यूँ तो अपनी,
जवाब देंहटाएंकभी हँसते हुए, कभी रोते हुए,
पर जो इश्क की खातिर, आंसू बहाए,
उसकी ज़िन्दगी को भी, अश्क ऐ यार लिखिए।
waah kya baat hai sundar