ख़बर रखते तो थे हम ज़माने भर की ऐ दोस्त,
अब आलम ये है के, ख़ुद ही ख़बर ली नही जाती।
वो कहते हैं के, ख़्वाब सजाया करो निगाहों में,
इन निगाहों का क्या करें, जिनमे, उनके सिवा कोई, तस्वीर नही आती।
सितम करना सुना था, एक अदा है हुस्न की,
सवाल ये है, क्या इसके सिवा, कोई अदा उसे नही आती?
ख़याल आया जो कभी उनका, तो हाथ दिल पे रख लिया,
इस दिल से अब उनकी याद भी, सही नही जाती।
दुश्मनों से दुश्मनी निभाना, तो खूब सीखा है हमने भी,
मगर ये जो दिल से जंग है, वो लड़नी नही आती।
सितम करना सुना था, एक अदा है हुस्न की,
जवाब देंहटाएंसवाल ये है, क्या इसके सिवा, कोई अदा उसे नही आती?
waah ji waah bahut khub,sundar rachana
दुश्मनों से दुश्मनी निभाना, तो खूब सीखा है हमने भी,
जवाब देंहटाएंमगर ये जो दिल से जंग है, वो लड़नी नही आती।
bahot khub sahab bahot badhiya jari rahe......