है तलाश किसकी, क्यूँ किसी को ढूँढता हूँ मैं,
जब पास नही है वो मेरे, क्यूँ उसे देखता हूँ मैं?
किताब ज़िन्दगी की फिर पढ़ लेंगे दोस्तों,
अभी तो मौत का फलसफा पढ़ रहा हूँ मैं।
गुलाम ज़िन्दगी फिर से होने लगी है ये,
ख़ुद इस ज़ंजीर को लपेटे बैठा हुआ हूँ मैं।
है सितम नज़र उनकी तो वो ही सही सही,
अब तो इस सितम के ही इंतज़ार मैं जी रहा हूँ मैं।
है तलाश किसकी, क्यूँ किसी को ढूँढता हूँ मैं,
जवाब देंहटाएंजब पास नही है वो मेरे, क्यूँ उसे देखता हूँ मैं?
किताब ज़िन्दगी की फिर पढ़ लेंगे दोस्तों,
अभी तो मौत का फलसफा पढ़ रहा हूँ मैं।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है...
है सितम नज़र उनकी तो वो ही सही सही,
जवाब देंहटाएंअब तो इस सितम के ही इंतज़ार मैं जी रहा हूँ मैं।
बहुत अच्छे ....