कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
बुधवार, 19 नवंबर 2008
होती है जलन, परवाने की शहादत पे मुझे! हाल ऐ दिल!
देखकर परवाने का, दीवानापन, कुछ शमा भी, इतराई तो होगी,
हल्की ही सही, उसकी आग में, गुलाबी सी मुस्कुराहट, आई तो होगी।
सोचा तो होगा, उसने भी, परवाने के जल जाने पर,
उसकी आँख भी, परवाने के अंजाम पर, भर आई तो होगी।
क्या है ज़िन्दगी भी, परवाने की, शमा की नज़रों में,
ये बात, किसी शायर ने, कलम से, उठाई तो होगी।
है अंजाम क्यूँ, मुहब्बत का, चाहत में जल जाना यारों,
इस सवाल पे, किसी दीवाने ने, अदालत लगायी तो होगी।
होती है जलन, परवाने की शहादत पे मुझे, ना जाने क्यूँ?
इस परवाने ने, लोगों के दिलों में जगह, बनाई तो होगी।
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बहुत बढ़िया जा रहे हो!
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