कल कोई ज़िक्र वफ़ा का कर रहा था कहीं...और मैं फिर आदतन तुम्हे याद कर बैठा........ क्या करूँ पागलपन गया जो नहीं है अभी........फिर उस शख्स की बातें ध्यान से सुनने लगा और ..........और..........और फिर सोचा अब भी लोग वफ़ा पे यकीन करते हैं?........यूँही शिक़वे शिक़ायत करते आगे बढ़ा...........तो ख़ुद को उसी बस स्टॉप पर पाया, जहाँ अक्सर मैं तुम्हारा इंतज़ार किया करता था.............कुछ देर वहां रुका और अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गया.........चलते चलते यूँही एक पुराना तराना दिमाग में आया .........फिर वही यादों का दौर एक बार फिर, शुरू जो हुआ दिन ढलने के बाद तक जारी रहा....
सर-ऐ-शाम तेरी याद......
और नम आँखें...
तेरी यादों से कुछ रिश्ता बाक़ी है अभी......
सर-ऐ-शाम तेरी याद......
और नम आँखें...
तेरी यादों से कुछ रिश्ता बाक़ी है अभी......
...बहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
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