रविवार, 16 मई 2010

अगर ये फासला ना होता, तो क्या ये मज़ा होता ? त्रिवेणी की कोशिश!


याद जब भी आती है, तो आँखें नाम हो ही जाती हैं,
तेरी बातों की यादों में, ये ग़ोते लगाती हैं ,
!
!
!
अगर ये फासला ना होता, तो क्या ये मज़ा होता ?

3 टिप्‍पणियां:

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails