कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
गुरुवार, 27 मई 2010
सोमवार, 24 मई 2010
बस स्टॉप और तेरी यादों से रिश्ता! हाल ऐ दिल!
कल कोई ज़िक्र वफ़ा का कर रहा था कहीं...और मैं फिर आदतन तुम्हे याद कर बैठा........ क्या करूँ पागलपन गया जो नहीं है अभी........फिर उस शख्स की बातें ध्यान से सुनने लगा और ..........और..........और फिर सोचा अब भी लोग वफ़ा पे यकीन करते हैं?........यूँही शिक़वे शिक़ायत करते आगे बढ़ा...........तो ख़ुद को उसी बस स्टॉप पर पाया, जहाँ अक्सर मैं तुम्हारा इंतज़ार किया करता था.............कुछ देर वहां रुका और अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गया.........चलते चलते यूँही एक पुराना तराना दिमाग में आया .........फिर वही यादों का दौर एक बार फिर, शुरू जो हुआ दिन ढलने के बाद तक जारी रहा....
सर-ऐ-शाम तेरी याद......
और नम आँखें...
तेरी यादों से कुछ रिश्ता बाक़ी है अभी......
सर-ऐ-शाम तेरी याद......
और नम आँखें...
तेरी यादों से कुछ रिश्ता बाक़ी है अभी......
रविवार, 16 मई 2010
अगर ये फासला ना होता, तो क्या ये मज़ा होता ? त्रिवेणी की कोशिश!
गुरुवार, 13 मई 2010
मैं तेरी यादों से कितना दूर चला आया हूँ। त्रिवेणी की कोशिश!
सोमवार, 10 मई 2010
जाने से पहले ख़ता तो बता जाता। हाल ऐ दिल!
गुरुवार, 6 मई 2010
कम्बख्त बेवफा ना होता, तो मेरे दिल में ही रह रहा होता। हाल ऐ दिल!
शनिवार, 1 मई 2010
और वो मुझे ग़म देता रहा! हाल ऐ दिल!
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