शनिवार, 27 सितंबर 2008

मुझको दुःख मेरा भाई मुझसे अब बच कर रहे। हाल ऐ दिल!

वो जलाता है घर क्यूँ अपना, जो कभी घर का चिराग था,
किसने दी उसको ये लो जो अब निकल कर फैलने लगी है,
हैं मेरे सवाल कई, पर ले के किसके पास जाऊं?
कोई कहे वो दुश्मन है, कोई उसे जल्लाद कहे।


मैं तो बस ये चाहूँ, उसकी भी कुछ सुन तो लो,
क्या पता वो आगे चलकर औरों को न अपने जैसा बनने को कहे।


हो रहा है शोर चारों ओर,
मातम है फैला मेरे घर में, उसके घर में,
हैं सभी हैरान, ये सब देखकर,
कुछ ऐसे भी होंगे, जिनकी ग़लती कोई न खुलकर कहे।


मारा है मुझे, मेरे ही हाकिम ने हर बार,
कभी मेरा दोस्त बनकर और कभी दुश्मन की तरह,
वो तो जो हैं वो रहेगा उसका,
मुझको दुःख है मेरा भाई, मुझसे अब बच कर रहे।

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