मंज़िल ना कोई रास्ता है मेरा,
ये वक़्त का पल ही कारवां है मेरा।
ना जाने कितनी दूर जा पाउँगा मैं?
ये पल ही तो बस रास्ता है मेरा।
सितम हैं किसीके मेरे दिल पर कितने ,
दिल खोलके मैं बताऊँ कैसे?
के हर सितम से लगता है,
जैसे कोई नाता हो मेरा।
किससे बोलूँ और किधर जाऊं,
यही सोचता रहता हूँ मैं,
ना कोई साथी है मेरा,
ना कोई सहारा है मेरा।
ख़ुदा ने ज़िन्दगी भी,
ये अजीब बनायी है यारों,
जो जितना है दिल के क़रीब,
उससे उतना ही दूर का नाता है मेरा।
बहुत दिल से लिखी हुई अच्छी रचना...लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंनीरज
बेहतरीन रचना!!! बधाई.
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