सोमवार, 25 जून 2012

Tamasha hai Zindagi aur main ek bandar: तमाशा है ज़िन्दगी,


तमाशा है ज़िन्दगी,
और उस तमाशे का,
मैं कोई बन्दर सा हूँ,
लोग आते हैं,
 चंद सिक्के उछलकर चले जाते हैं,
और मैं उन सिक्कों को,
समेटता रह जाता हूँ।


गुज़र जाती हैं,
मेरी ज़िन्दगी की, कुछ घड़ियाँ,
यूँही उछलते  कूदते,
मगर जब शाम होती है,
खुद को तनहा,
किसी रस्सी से बंधा पाता  हूँ,
मैं सिक्को को  समेटता रह जाता हूँ।


 कल जब मैं मिला था अपने आप से,
 उस अँधेरे कोने में,
जहाँ रहती थी तनहाई,
रहती ग़मों को पिरोने में,
पाया खुद को किसी धागे में बंधा,
उलझा हुआ सवालों में,
न जाने क्यूँ खुद को अब तक,
उन बंदिशों से आज़ाद करा न पाता हूँ,
मैं सिक्को को समेटता रह जाता हूँ।

शुक्रवार, 8 जून 2012

ज़िन्दगी को एक बोझ की तरह, जी कर ही रवानगी ले लूँगा.


शाम ज़रा मुख़्तसर सी होकर,
सिकुड़कर बैठी है,
और मैं सोच रहा हूँ,
शायद कुछ ज़िन्दगी के बारे में,
पता नहीं मिलेगी भी मुझे,
या फिर यूँही तन्हा,
कुछ हसरतों को लिए,
ज़िन्दगी को एक बोझ की तरह,
जी कर ही रवानगी ले लूँगा.

लोग कहते हैं,
तू मायूसी मिटा देता है,
जहाँ भी जाता है.
मैं हँस देता हूँ,
ये सोचकर,
के मेरे दिल की मायूसी भी,
क्या कभी मिट पायेगी,
या फिर यूँही तन्हा,
कुछ हसरतों को लिए,
ज़िन्दगी को एक बोझ की तरह,
जी कर ही रवानगी ले लूँगा.

रविवार, 15 जनवरी 2012

क्रिकेट: क्या केवल कुछ matches हारें से १०० से, अधिक टेस्ट खेलने वालों की योग्यता कम हो गयी है?



भारत की क्रिकेट टीम अपना तीसरा टेस्ट मैच भी ऑस्ट्रेलिया के हाथों बुरी तरह हार गयी। सभी नाराज़ हैं और मैं भी हूँ। सभी गुस्से में ना जाने क्या क्या बोल रहे हैं। कोई कहता है अब सचिन को खेलना छोड़ देना चाहिए और कोई राहुल द्रविड़ के पीछे पड़ा है, किसीको अब लक्ष्मण पसंद नहीं आ रहा तो कोई सहवाग के पीछे पड़ा है। सभी चाहते हैं के इन बड़े खिलाडियों को अब खेल से सन्यास ले लेना चाहिए। गोरतलब ये है की अभी कुछ दिन पहले तक हम सब इन्ही लोगों के गुणगान करते थे और हमें इनमे इतनी कमियां निकाल रहे हैं।
मेरा सवाल ये है की क्या कुछ matches हारने से इन खिल्दियों जिन्होंने १०० से अधिक टेस्ट matches खेलें हैं, इनकी योगता कम हो गयी है?

pic from yahoo cricket।

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

हाल ऐ दिल: खंडहर शिक़वा नहीं करते.


लौटा है कोई बड़ी मुद्दत के बाद यहाँ,
दिल में कईं अरमान, कईं डर हैं उसके,
!
!
!
भूल गया, खंडहर शिक़वा नहीं करते.

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