शुक्रवार, 8 जून 2012

ज़िन्दगी को एक बोझ की तरह, जी कर ही रवानगी ले लूँगा.


शाम ज़रा मुख़्तसर सी होकर,
सिकुड़कर बैठी है,
और मैं सोच रहा हूँ,
शायद कुछ ज़िन्दगी के बारे में,
पता नहीं मिलेगी भी मुझे,
या फिर यूँही तन्हा,
कुछ हसरतों को लिए,
ज़िन्दगी को एक बोझ की तरह,
जी कर ही रवानगी ले लूँगा.

लोग कहते हैं,
तू मायूसी मिटा देता है,
जहाँ भी जाता है.
मैं हँस देता हूँ,
ये सोचकर,
के मेरे दिल की मायूसी भी,
क्या कभी मिट पायेगी,
या फिर यूँही तन्हा,
कुछ हसरतों को लिए,
ज़िन्दगी को एक बोझ की तरह,
जी कर ही रवानगी ले लूँगा.

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपका यह हिंदी ब्लॉग आचा है परन्तु अपने लिखना बंद कर दिया..आपकी ही तरह मैंने भी अपना हिंदी में एक ब्लॉग बनाया है Govt Jobs Guide और मेरे ब्लॉग पर ट्रैफिक भी काफ़ी ज्यादा आ रहा है .

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