शुक्रवार, 26 मार्च 2010

कमबख्त दोस्त ही रहता, तो अच्छा होता। दो लाइन!




वो तो एक अच्छा दुश्मन भी ना बन सका,
कमबख्त दोस्त ही रहता, तो अच्छा होता।

4 टिप्‍पणियां:

  1. ये लाइने तो खूबसूरत हैं अच्‍छा है आपने गजल पूरी करने की खराश नहीं पाली।

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  2. शुक्रिया राजे साहब, मुझे लगा के कहीं ग़ज़ल पूरी करने के चक्कर में इन लइनों की रूह ही ना निकल जाए.

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