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शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

तुम चले क्यूँ नही जाते ? : यूँही चलते चलते


यूँ फूल भी ज़रा छुपकर मुस्कुराने लगे हैं,
भँवरे भी इस बाग़ से बचकर जाने लगे हैं,
तुम यहाँ से उठकर चले क्यूँ नही जाते?
तुम्हे देखकर नज़ारे भी शर्माने लगे हैं।

शुक्रवार, 8 मई 2009

गर्व से कहो हम पप्पू हैं.

कल दिल्ली में चुनाव का दिन और हमने भी सोचा था के कम से कम हम तो पप्पू नही बनेंगे। पर क्या करें, जो किस्मत में पप्पू बनाना ही लिखा था तो। हमारे चाहने या न चाहने से क्या होता है। जब चुनाव आयोग ही हमें पप्पू बनाना चाहता था। तो जनाब हुआ ये के हमारा तो नाम ही वोटर लिस्ट में से गायब पाया गया। और हम न चाहते हुए भी पप्पू बनकर घर वापस आ गए।
पर इस प्रकार से पप्पू बनने के बाद भी हमने सोचा के क्यूँ न इस बात का ऐलान भी कर दिया जाए। जो जो भाई जो लोग भी मेरी तरह न चाहते हुए भी पप्पू बने हैं तो ज़रा ज़ोर से बोले। गर्व से बोलो " हम पप्पू हैं ", ज़ोर से बोलो "हम पप्पू हैं।"

शनिवार, 24 जनवरी 2009

जावेद मियांदाद और किरण मोरे का मज़ेदार किस्सा!!! यूँही चलते चलते

जावेद मियांदाद और किरण मोरे का मज़ेदार किस्सा। जब किरण मोरे ने विकेट के पीछे से मियांदाद को कुछ कहा और बदले में मियांदाद ने जो किया वो बताने वाला नही दिखाने वाला है।

बुधवार, 21 जनवरी 2009

अब बहसियाने के भी पैसे!!! यूँही चलते चलते!!

ये भी खूब रही। पिछले दिनों जब मैं यूँही गूगल बाबा में झांकते झांकते एक ऐसी साईट पे पहुँच गया जहाँ लोग दबाके बहसिया रहे थे। थोड़ा और समझने की कोशिश की तो लगा के ये तो अच्छी जगह है बहस करने के लिए तो, फिर और नज़र दौड़ाई तो समझ आया के यहाँ तो बहस करने के भी पैसे दिए जा रहे हैं। अब माजरा समझ आया। मगर फिर सोचा इसमें बुराई ही क्या है? अगर बहस करने से किसी बात की जानकारी या समझ आती है तो बुरा क्या है और अगर इसके द्वारा कोई कुछ पैसा बना ले तो वो भी तो अच्छा ही है न। तो भाई इस साईट के बारे में अधिक जानने के लिए क्लिक करें http://www.mylot.com/?ref=Informer

और जमके बहस करें।

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