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गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

हाल ऐ दिल: ग़र वो बेवफा ना होता!



ख़याल उसका ना कभी आया होता,
यूँ ना दर्द को हमने कभी पाया होता,
वो भी रहता कभी हमारे दिल के करीब भी,
ग़र दिल बेवफा से ना लगाया होता

रविवार, 31 जनवरी 2010

तू कहीं शर्मिंदा ना हो जाये। हाल ऐ दिल!



यूँ सोचता हूँ के कभी मिलूँ,
तुझसे अचानक कहीं,

खौफ़ बस इतना है,
के तू कहीं शर्मिंदा ना हो जाये।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

तुम चले क्यूँ नही जाते ? : यूँही चलते चलते


यूँ फूल भी ज़रा छुपकर मुस्कुराने लगे हैं,
भँवरे भी इस बाग़ से बचकर जाने लगे हैं,
तुम यहाँ से उठकर चले क्यूँ नही जाते?
तुम्हे देखकर नज़ारे भी शर्माने लगे हैं।

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

दिल में जलने का अरमान न रह जाए! चार लाइन!

के बात कुछ तो आज हो ही जाए,
कभी हम हँसे और कभी वो मुस्कुराये,
हो अगर सितम दिल पर, चलो ये भी सही,
के दिल में जलने का अरमान, रह न जाए।

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