हिन्दी ब्लोग्गिंग एक दूसरे के कंधे पर चल रही है।
मगर एक बात जो मुझे लगती है वह ये है कि अभी हमने ईमानदारी से लिखना ही शुरू नही किया है।
अभी हम भी मीडिया समूह के जैसी ही सोच पाले हुए हैं और वही लिखने कि कोशिश करते हैं जिन्हें हम सोचते है कि लोग पढेंगे। हम वो नही लिखते जो हमें लिखना चाहिए इसमें मेरा नाम भी शामिल किया जा सकता है। अक्सर लिखने से पहले मैं भी सोचता हूँ कि मैं लिख तो रहा हूँ मगर क्या कोई पढ़ेगा भी। मगर इसका अपवाद यदि मैं ईमानदारी से देखूं तो मेरी ख़ुद कि ही एक पोस्ट थी जो कि मैंने अपनी चप्पलें चोरी होने के बारे में लिखी थी जो कि काफ़ी पसंद कि गई। मतलब ये कि यदि आप अपनी ईमानदारी से लिखते हैं बजाये इस बात की परवाह के कि कोई पढ़ेगा या नही तो जो कंटेंट कि कमी है वो पूरी हो जायेगी।
कंटेंट सब जगह होता है मगर इस पर विचार करने कि आवश्यकता है। यदि हम अपनी ईमानदारी बरतें और हर कंटेंट पर विस्तार से सोचें और थोडी रिसर्च करें तो हर वो लेख जो हम लिख रहे हैं ज़रूर पसंद किए जायेंगे। बाकी सब जो भी विवाद या उल्टा सीधा हम कभी न कभी लिख लेते हैं उससे छुटकारा भी मिल जाएगा।