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सोमवार, 25 अगस्त 2008

आज फिर आँख में नमी चली आई....

आज फिर आँख में नमी चली आई....
तन्हाई में यार की कमी चली आई....
भाग रहे थे जिन यादों से हम......
आज फिर से वो हमे घेरे चली आई.....

सोच पे कोई ज़ोर चले...
फिर दिल को हम रोक सके...
आज फिर उससे मिलने की तलब चली आई...
आज फिर आँख में नमी चली आई...
तन्हाई में यार की कमी चली आई....

ज़िंदा हुए है कुछ मरे से जज़्बात...
फिज़ाओं में फिर से वही खुशबू चली आई...
यादों के झरोकों से कुछ धुंधली तस्वीरें चली आई...
आज फिर आँख में नमी चली आई....
तन्हाई में यार की कमी चली आई...

आज फिर मुस्कुराहट की जगह ग़म ने ली...
अपनों के बीच भी मेरे हिस्से तन्हाई की आई...
दुनिया के शोर में भी खामोशी नज़र आई...
आज फिर आँख में नमी चली आई...
तन्हाई में यार की कमी चली आई....

शनिवार, 23 अगस्त 2008

खोने का ग़म क्या जब उसे पाया ही न था

खोने का ग़म क्या जब उसे पाया ही था
हमने तो उसे अपना माना पर उसने अपना बनाया ही था

परवाने की मौत का ग़म क्या उसकी किस्मत में जल जाना ही तो था
शमा से गिला केसी आखिर उसका मकसद उसे जलना तो था

रेत के का क्या उन्हें तो ढेह जाना ही तो था
सपनो के अशिआने का क्या तुम्हे नींद से उठ जाना ही तो था

ज़िन्दगी का ग़म कैसा आखिर उसे मिटjजाना ही तो था
मौत का खौफ कैसा उसे आना ही तो था

जो किस्मत में था उसे खो जाना ही तो था.........................

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