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तनहा खड़ा हूँ खुद के घर में / इमेज; hqwallbase.com |
कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
रविवार, 28 सितंबर 2014
तनहा खड़ा हूँ खुद के घर में
रविवार, 6 जुलाई 2008
कह देना उन्हें के सो जायें, दीदार ख़्वाबों में कर लेना! हाल ऐ दिल!

दीदार ख़्वाबों में कर लेना!
दीदार ख़्वाबों में कर लेना!
दीदार ख़्वाबों में कर लेना!
दीदार ख़्वाबों में कर लेना!
रविवार, 29 जून 2008
वो मुस्कुराकर बोले कि एक और आशिक का जनाज़ा चल दिया। हाल ऐ दिल !
यूँ शाम है, तन्हाईयाँ और तेरी याद है,
बस कमी जाम की थी, ये काम आंसुओं ने कर दिया।
वो तो बैठे थे के रुसवा करके जायेंगे हमें,
उनकी कोशिश तो क्या होती, ये काम तेरी बेवफाई ने कर दिया।
हम हैं के मरे जाते हैं खुशियों पर उनकी,
और वो हैं जिन्होंने कब्र का इंतेज़ाम भी कर दिया।
हर किसीको आ रही थी सदा हमारी,
और वो मुस्कुराकर बोले कि एक और आशिक का जनाज़ा चल दिया।
शनिवार, 21 जून 2008
क्या गुनाह किया है कोई जो नसीब में बस,तन्हाईयाँ और सिर्फ तन्हाईयाँ ही लिखी है। हाल ऐ दिल!
तन्हाई में जीने की आदत ना थी,
ना खवाहिश कभी चुप रहने की, की,
चाहतें तो घिरे रहने की थीं दूसरों से हमेशा,
पर मुमकिन नहीं कि हो हर सपना पूरा हमेशा।
कभी जो रहते थे दिल क करीब,
आज उन्हें हमारी मौजूदगी भी नागवार गुज़रती है,
बातों में हमारी सौ बुराइयां और बस खामियां ही खामियां दिखती है,
क्या सच में बदल दिया वक़्त ने इतना कुछ कि,
कि हमारी परछाईयाँ भी हम से डरती है।
क्या गुनाह किया है कोई जो नसीब में बस,
तन्हाईयाँ और सिर्फ तन्हाईयाँ ही लिखी है।
निदा अर्शी
शुक्रवार, 20 जून 2008
तेरा वो ख़त आखिरी वाला! हाल ऐ दिल !
के जिसमें तुमने अपने दिल की सारी बातें मुझे इशारों में समझाई थी,
वो ख़त जो मैंने आज भी संभल कर रखा है,
जिसमें तुमने मुझे आखिरी बार याद किया था।
कभी कभी सोचता हूँ जला दूँ उसे,
फिर सोचता हूँ, आखिरी याद है सहेजकर रख लूँ उसे,
वो ख़त आज भी मुझे तुम्हारी याद दिलाता है,
जिसमें तुमने मुझे आखिरी बार याद किया था।
बार बार पढता हूँ आज भी उसे,
फिर उसे दुबारा उठा के दिल के करीब ले जाता हूँ,
वो ख़त आज भी मुझे तुम्हारे होने का एहसास दिलाता है,
जिसमें मैंने तुम्हे आखिरी बार महसूस किया था।
अगर नही कहूं तो झूठा बन जाऊंगा मैं,
के आज भी इन्तेज़ार तेरा कर रहा हूँ मैं,
आज भी मेरे सिरहाने रखा होता है वो ख़त,
जिसमें मैंने आखिरी बार तेरे अक्स को महसूस किया था।
मंगलवार, 17 जून 2008
फिर इन आंखों में नमी चली आई। हाल ऐ दिल!
तू तो आया नही, तेरी याद चली आई,
फिर इन आंखों में नमी चली आई।
हँस रहा था यूं तो मैं तस्वीर खुशगवार देखकर,
फिर क्या हुआ जो इस तस्वीर में तेरी झलक नज़र आई,
फिर इन आंखों में नमी चली आई।
कल पूछ रहा था डाकिया मुझसे जाते-जाते,
क्या हुआ आपकी कईं दिनों से चिठ्ठी नही आई?
फिर इन आंखों में नमी चली आई।
अब तो आईना भी मुझे चिढाने लगा है,
मुझको मेरी तस्वीर ही उसमें धुंधली नज़र आई,
फिर इन आंखों में नमी चली आई।
नज़र उठा के आसमान को जो देखा मैंने,
बादलों से झांकते हुए फिर तू नज़र आई,
फिर इन आंखों में नमी चली आई।
यूं तो सुना था बदकिस्मत है वो, जिनके हिस्से में ग़म नही होते,
मगर अपने हिस्से में ये खुशकिस्मती दामन भरके आई,
फिर इन आंखों में नमी चली आई।
हमने सोचा था के अब अश्क भी सूख चुके हैं हमारे,
मगर आज फिर एक लहर लबों तक उठ आई,
फिर इन आंखों में नमी चली आई।
सोमवार, 16 जून 2008
के पड़ रही हैं बारिश की बूँदें और तुम याद आ रहे हो! : हाल ऐ दिल
के पड़ रही हैं बारिश की बूँदें,
और मुझे, तुम याद आ रहे हो।
हो रहा है दिल मोर की तरह बैचैन,
उठ रही हैं दिल में हसरतें,
और मुझे, तुम याद आ रहे हो।
कर रहा हूँ महसूस खुशबुओं को मिटटी की,
बस रही हैं मेरी साँसों में सीरत इनकी,
और मुझे, तुम याद आ रहे हो।
सामने देख रहा हूँ किसी को लड़ते हुए,
के हो रही हैं शिकायतें बारिश में निकलने पर,
और मुझे, तुम याद आ रहे हो।
के बैठा हुआ हूँ हाथ में चाए का कप लिए,
सामने से तुम्हारे मनपसंद पकोडों की खुशबू आ रही है,
और मुझे, तुम याद आ रहे हो।
जब भी चल रही है ठंडी हवा,
देख रहा हूँ उड़ती हुई जुल्फें किसीकी,
और मुझे, तुम याद आ रहे हो।
जब कम हो रही हैं बूँदें, सामने से कोई कह रहा है,
मौका अच्छा हैं अब निकलने दो,
और मुझे, तुम याद आ रहे हो।
शनिवार, 14 जून 2008
चंद अशआर : कुछ मेरी डायरी से !
हमें ऐतबार था के वो लौटकर आएगा,
बस इसी इंतज़ार में सांस को रोके रखा हमने।
हर एक वक़्त आता है ख्याल उनका हमें,
क्या उनका भी हाल यही होता होगा?
वो मुस्कुरा रहा है मेरे ज़ख्म देखकर,
के जिसके ज़ख्मो पे कभी हमने अपना दिल रख दिया था।
एक लम्हे ने बदल दी दुनिया,
के जो अपना था अब वो पराया हो गया है।
मैं आज फिर ख्वाब से डरकर उठा ,
के आज फिर तेरी बेवफाई को ख्वाब में देखा मैंने.....
मुश्किलात से बचकर कब तक भागेगा,
जब कोई याद आएगा तो तड़प जायेगा।
उसको आदत है रोकर लोगों को रुला देने की मगर,
उसके रोने का असल दर्द मालूम तो करना होगा।
हंसने की चाहत में रोना सिखा दिया,
तेरी बेवफाई ने आंसुओं का झरना बना दिया॥
करूं कैसे इज़हार ए मोहब्बत किसी और से,
के हर जगह तेरा ही चेहरा नज़र आता है।
कहने को तो खुददार मैं भी हूँ वो भी है,
मगर इस खुददारी का सिला शायद मुझे न मिले।
ये भी एक तुकबंदी से ज़्यादा कुछ नही है। पता नही किसी को पसंद आएगी भी नही।