शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

न जाने किन गुनाहों का मुझसे हिसाब कर गया। हाल ऐ दिल!

कल वो फिर कोई अधूरी बात कर गया,
वो जा रहा था पर जाते जाते मेरी काली रात कर गया।

यूँही करवट बदलते फिर गुजरी मेरी रात ऐसे,
न जाने किन गुनाहों का मुझसे हिसाब कर गया।

अब आज फिर दुबारा इंतज़ार हो रहा है उसका,
वो अपने इंतज़ार को मेरी ज़िन्दगी के साथ कर गया।

वो जो कभी ज़िन्दगी था मेरी,
आज मेरी ज़िन्दगी बरबाद कर गया।

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

काश ज़िन्दगी भी क़ायदों पे चला करती! हाल ऐ दिल!

काश ज़िन्दगी भी क़ायदों पे चला करती,
शुरू में लिखी बात आख़िर तक चला करती।
काश होता सबको पता अंजाम, क़ायदों के तोड़ने का क्या होगा,
काश इन क़ायदों के टूटने पे, सज़ा भी मिला करती।

न करता फिर कोई कोशिश, तोड़ने की दिल किसीका,
और न फिर कहीं किसीके, रोने की आवाज़ आया करती।
काश ज़िन्दगी भी क़ायदों पे चला करती,
शुरू में लिखी बात आख़िर तक चला करती।

यूँ कभी न रोता कोई बच्चा, भूख से उठकर,
न कोई बच्ची भूख से रोते हुए, सो जाया करती।
काश ज़िन्दगी भी क़ायदों पे चला करती,
शुरू में लिखी बात आख़िर तक चला करती।

पर ये काश भी अजीब दर्द रखता है,
जो न हो सके वही बात दबाकर रखता है,
बाद में आता है दिलाने, गलती का ये एहसास हमको,
काश इसको इस बात की, सज़ा भी मिला करती।
काश ज़िन्दगी भी क़ायदों पे चला करती,

शुरू में लिखी बात आख़िर तक चला करती।

शनिवार, 24 जनवरी 2009

जावेद मियांदाद और किरण मोरे का मज़ेदार किस्सा!!! यूँही चलते चलते

जावेद मियांदाद और किरण मोरे का मज़ेदार किस्सा। जब किरण मोरे ने विकेट के पीछे से मियांदाद को कुछ कहा और बदले में मियांदाद ने जो किया वो बताने वाला नही दिखाने वाला है।

बुधवार, 21 जनवरी 2009

अब बहसियाने के भी पैसे!!! यूँही चलते चलते!!

ये भी खूब रही। पिछले दिनों जब मैं यूँही गूगल बाबा में झांकते झांकते एक ऐसी साईट पे पहुँच गया जहाँ लोग दबाके बहसिया रहे थे। थोड़ा और समझने की कोशिश की तो लगा के ये तो अच्छी जगह है बहस करने के लिए तो, फिर और नज़र दौड़ाई तो समझ आया के यहाँ तो बहस करने के भी पैसे दिए जा रहे हैं। अब माजरा समझ आया। मगर फिर सोचा इसमें बुराई ही क्या है? अगर बहस करने से किसी बात की जानकारी या समझ आती है तो बुरा क्या है और अगर इसके द्वारा कोई कुछ पैसा बना ले तो वो भी तो अच्छा ही है न। तो भाई इस साईट के बारे में अधिक जानने के लिए क्लिक करें http://www.mylot.com/?ref=Informer

और जमके बहस करें।

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

फिर ख़ुद ही दबी चाहत को, जताने लगे हैं यूँ!!!!! हाल ऐ दिल!

यूँ जगने लगी है तमन्ना, फिर से न जाने क्यूँ?
आने लगा है याद कोई, मुझको न जाने क्यूँ?


जाने क्या बात हुई के, फिर मुस्काने लगा हूँ मैं,
हँसते हँसते आँख में आंसू, आने लगे हैं क्यूँ?


है यूँ तो हर तरफ़ महफिल, का सा माहौल,
फिर भरी महफिल में हम, इतराने लगे हैं क्यूँ?

होने लगा है फिर ये दिल, बेक़रार सा,
हम इस बेक़रारी का मज़ा, उठाने लगे हैं क्यूँ?

सोचा न था आयेगा, फिर से ये दौर, ज़िन्दगी में,
अब आ ही गया तो इतना, घबराने लगे हैं क्यूँ?

लगता है फिर से नदीम मियाँ, चाहने लगे हैं किसी को,
या फिर ख़ुद ही दबी चाहत को, जताने लगे हैं यूँ!!!!!

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