ऐसा लग रहा है जैसे विरोध में जूता चलाना एक नया चलन बनता जा रहा है। पहले अमेरिकन और अब चीनी राजनीतिज्ञ इसका शिकार हुए। ये बात और है कि विरोध में जूते चलाना या सज़ा देना भारत में इजाद किया गया मगर ऐसा लग रहा है के अब इसका श्रेय इराकियों ने ले लिया है। हमारे देश में ऐसी कई कहानियाँ और लोकोक्तियाँ मिलती हैं जहाँ जूतों का ज़िक्र आता है। यहाँ अक्सर चोरों के गले में जूतों की माला डालकर और मुंह काला करके गधे पे घुमाने की परम्परा ज़िक्र कई बार प्रकाश में आता है
मगर आज अचानक सवाल मन में आया तो सोचा पूछ ही लूँ कि क्या विरोध में जूते मारना विरोध का अच्छा तरीका है?
जब किसी की कोई बात नही मानता है तो आदमी को विवश होकर जूते चलाने पड़ते है . एक बात और लातो के भूत जब बातो से नही मानते तो जूते का प्रयोग करना ही बेहतर विकल्प है .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया तरीका है जी, बशर्ते वह जूता वापस मिल जाये, ताकि अगले पर दोबारा फ़ेंका जा सके… ऐसे में रिकॉर्ड बनाने वालों को भी सहूलियत होगी, जिसके जूते पर ज्यादा से ज्यादा नाम लिखे होंगे उसे गिनीज़ बुक में शामिल किया जायेगा, कहावत भी चल पड़ेगी "जूते-जूते पे लिखा है खाने वाले का नाम्…"
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया तरीक़ा है सर! इससे उम्दा तरीका सच पूछिए तो कुछ हो ही नहीं सकता. वैसे जूता कोई ख़राब चीज़ नहीं है. अव्वल तो ये बडी अच्छी चीज़ है. यक़ीन न हो तो यहाँ देखें :
जवाब देंहटाएंwww.iyatta.blogspot.com