कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
बुधवार, 4 फ़रवरी 2009
क्या लेखक का एक मात्र मकसद ये है कि उसकी कोई किताब छपे? एक प्रश्न!
शायद इसका कारण ये होगा के आपको धन लाभ की उम्मीद कम होती है इन्टरनेट पर।
मगर क्या वाकई ऐसा है? मैं इस बात पर साथियों के विचार जानना चाहूँगा।
क्या जूते मारना, विरोध करने का अच्छा तरीका है? एक प्रश्न!
मगर आज अचानक सवाल मन में आया तो सोचा पूछ ही लूँ कि क्या विरोध में जूते मारना विरोध का अच्छा तरीका है?
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009
धन्यवाद! डॉ. अनुराग साहब!
ये पोस्ट उस व्यक्ति के नाम लिख रहा हूँ जिनको आज फिर पढ़कर लिखने का मन करने लगा है। डॉ अनुराग एक जाना माना नाम हैं हमारे इस ब्लॉगजगत में और अब ये मेरा प्रेरणा पात्र भी बन गए हैं। पिछले काफ़ी समय से न जाने क्या हो रहा है। बार बार कोशिश करता हूँ लिखने की, कुछ लिखता हूँ, कभी अधूरा छोड़ देता हूँ, तो कभी उसे डिलीट कर देता हूँ। मगर आज न जाने क्या हुआ के डॉ अनुराग की पोस्ट पढने के बाद ऐसा लगा मानो उन्होंने मेरे ही मन की कोई बात ब्लॉग पर उतार दी हो और अब फिर से मन करने लगा है के कुछ लिखूं। वैसे धन्यवाद तो मैं उन्हें टिप्पणी के द्वारा भी दे चुका हूँ मगर फिर सोचा जब लिखना है ही तो क्यूँ न उनको धन्यवाद ही लिख दूँ।
तो धन्यवाद डॉ अनुराग साहब एक बार फिर से।