बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

क्या लेखक का एक मात्र मकसद ये है कि उसकी कोई किताब छपे? एक प्रश्न!

जब भी किसीको पता चलता है के मैं कुछ लिख लेता हूँ और उन्हें थोडी बहुत तुकबंदी सुना देता हूँ तो हमेशा सभी यही कहता हैं के "आप अपनी कोई किताब क्यूँ नही छपवाने की कोशिश करते? आपको किताब छपवानी चाहिए." यही कभी कभी मैं भी करता हूँ जब मुझे कोई अच्छा कवि या शायर या शायरा या कोई अच्छा कहानीकार मिलता है। मगर आज अचानक बैठे बैठे ये ख्याल आया के क्या ये ज़रूरी है के हर एक लेखक या शायर अपनी किताब ही छपवाए और वो भी इस समय में जब आपकी किताब को लेने वाले लोगों को आप आसानी से गिन सकते हैं। तो ऐसी किसी किताब का क्या लाभ ? खासतौर पर तब, जब आपके पास इन्टरनेट जैसा माध्यम है जो आपकी लिखी कविता या नज़म या कहानी को लाखों लोगों तक पहुँचा सकता है।
शायद इसका कारण ये होगा के आपको धन लाभ की उम्मीद कम होती है इन्टरनेट पर।
मगर क्या वाकई ऐसा है? मैं इस बात पर साथियों के विचार जानना चाहूँगा।

क्या जूते मारना, विरोध करने का अच्छा तरीका है? एक प्रश्न!

ऐसा लग रहा है जैसे विरोध में जूता चलाना एक नया चलन बनता जा रहा है। पहले अमेरिकन और अब चीनी राजनीतिज्ञ इसका शिकार हुए। ये बात और है कि विरोध में जूते चलाना या सज़ा देना भारत में इजाद किया गया मगर ऐसा लग रहा है के अब इसका श्रेय इराकियों ने ले लिया है। हमारे देश में ऐसी कई कहानियाँ और लोकोक्तियाँ मिलती हैं जहाँ जूतों का ज़िक्र आता है। यहाँ अक्सर चोरों के गले में जूतों की माला डालकर और मुंह काला करके गधे पे घुमाने की परम्परा ज़िक्र कई बार प्रकाश में आता है
मगर आज अचानक सवाल मन में आया तो सोचा पूछ ही लूँ कि क्या विरोध में जूते मारना विरोध का अच्छा तरीका है?

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

धन्यवाद! डॉ. अनुराग साहब!

ये पोस्ट उस व्यक्ति के नाम लिख रहा हूँ जिनको आज फिर पढ़कर लिखने का मन करने लगा है। डॉ अनुराग एक जाना माना नाम हैं हमारे इस ब्लॉगजगत में और अब ये मेरा प्रेरणा पात्र भी बन गए हैं। पिछले काफ़ी समय से न जाने क्या हो रहा है। बार बार कोशिश करता हूँ लिखने की, कुछ लिखता हूँ, कभी अधूरा छोड़ देता हूँ, तो कभी उसे डिलीट कर देता हूँ। मगर आज न जाने क्या हुआ के डॉ अनुराग की पोस्ट पढने के बाद ऐसा लगा मानो उन्होंने मेरे ही मन की कोई बात ब्लॉग पर उतार दी हो और अब फिर से मन करने लगा है के कुछ लिखूं। वैसे धन्यवाद तो मैं उन्हें टिप्पणी के द्वारा भी दे चुका हूँ मगर फिर सोचा जब लिखना है ही तो क्यूँ न उनको धन्यवाद ही लिख दूँ।

तो धन्यवाद डॉ अनुराग साहब एक बार फिर से।

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