मंगलवार, 30 जून 2009

क्या बस यही बाकी है, नसीब में मेरे? हाल ऐ दिल!

ज़रा ज़रा सी बात पे, यूँ रूठना तेरा,
फिर ज़रा पल्लू, सँभालते हुए चलना,
और वो कहना तेरा, मुँह बनाते हुए,
"अब न आउंगी, चाहे हाथ जोड़ो मेरे"

वो मेरा मुस्कुराकर, हाथ तेरा पकड़ना,
खींचना ख़ुद की तरफ़, आगोश में लेना,
और कहना दिल की बात, कान में तेरे,
"अब न जाने दूंगा, चाहे हाथ जोड़ो मेरे"।

कल रात, याद, तेरी बात को, करता रहा यूँही,
और न सो पाया, करवटें लेते लेते,
फिर वो आँखों में नमी,
और आंसुओं के रेले,
क्या बस यही बाकी है,
नसीब में मेरे?

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