ज़रा ज़रा सी बात पे, यूँ रूठना तेरा,
फिर ज़रा पल्लू, सँभालते हुए चलना,
और वो कहना तेरा, मुँह बनाते हुए,
"अब न आउंगी, चाहे हाथ जोड़ो मेरे"
वो मेरा मुस्कुराकर, हाथ तेरा पकड़ना,
खींचना ख़ुद की तरफ़, आगोश में लेना,
और कहना दिल की बात, कान में तेरे,
"अब न जाने दूंगा, चाहे हाथ जोड़ो मेरे"।
कल रात, याद, तेरी बात को, करता रहा यूँही,
और न सो पाया, करवटें लेते लेते,
फिर वो आँखों में नमी,
और आंसुओं के रेले,
क्या बस यही बाकी है,
नसीब में मेरे?
कोतुहल मेरे दिमाग में उठता हुआ एक छोटा सा तूफ़ान है.जिसमें में अपने दिल में उठा रही बातों को लिख छोड़ता हूँ.और जैसा की नाम से पता चलता है कोतुहल.
मंगलवार, 30 जून 2009
क्या बस यही बाकी है, नसीब में मेरे? हाल ऐ दिल!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत बढिया लिखा है .. बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी भाव अभिव्यक्ति है ;
जवाब देंहटाएंअब आंसू बहाना छोड़ दे ,
यादें को एक खुशनुमा मोड़ दे ,
सोच ज़रा उसका क्या हाल होगा ,
उसे भी हर पल तेरा ही ख्याल होगा ||
सुंदर!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ....दिल के भाव अच्छी तरह व्यक्त कर लेते हैं आप
जवाब देंहटाएंज़रा ज़रा सी बात पे, यूँ रूठना तेरा,
जवाब देंहटाएंफिर ज़रा पल्लू, सँभालते हुए चलना,
और वो कहना तेरा, मुँह बनाते हुए,
"अब न आउंगी, चाहे हाथ जोड़ो मेरे"
बहुत खूब लिखा है आपने और बिल्कुल सही फ़रमाया है! बहुत ही सुंदर रचना के मध्यम से आपने बहुत ही गहरी बात कह दी! ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई!