रविवार, 5 जुलाई 2009

फलसफ़ा जिंदगी का, तमाम हो चुका अपना। हाल ऐ दिल


जिंदगी की किताब के कुछ खाली पन्ने,
आज भी कुछ अल्फ़ाज़ों के लिखे जाने के इंतज़ार में हैं।
नादान है ये अभी नही जानते,
के फलसफ़ा जिंदगी का, तमाम हो चुका अपना।

गुरुवार, 2 जुलाई 2009




ख़बर रखते रहे ज़माने की,और ये याद ना रहा,
कब आखिरी बार मिले थे तुझे।
गुज़र गए अनजाने में,हम उन गलियों से,
जहाँ आखिरी बार मिले थे तुझे।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails