बचपन गुज़रा, शम्मी जी को देखते हुए, उनकी फिल्में, उनका पान पराग वाला विज्ञापन, उनके गले में पड़ी रहने वाली वो माला.... बहुत कुछ तो देखते हुए बड़े हुए, जो शायद कभी भुलाया नहीं जा सकता...उनका व्यक्तित्व, जो की शायद आजकल किसी को भी मुश्किल से मिलेगा...वो हर मुश्किल सवाल को सहजता से लेना... वो सवाल करने वाले के संकोच को मिटाते हुए, ख़ुद उस सवाल को पूरा करना.... अपनी बात को आसान शब्दों में समझाना...भारत के शायद सबसे पहले लोगों में से एक जिन्होंने इन्टरनेट प्रयोग करना शुरू किया... बहुत उनके बारे में जिन्हें हम अपना आदर्श मानते हैं...आप जहाँ भी रहे, ख़ुदा आपकी रूह को आराम पहुंचाए...अलविदा शम्मी साहब...