फिर कोई ज़िन्दगी का मतलब पूछ रहा है दोस्त,
फिर कोई लगता है आज परेशां हो के आया है।
ज़रा संभल चल रहा है आज वो इस जगह,
जो तेरी दहलीज़ पे बरसों आया है।
यूँही तमन्नाओं का खामियाज़ा भुगत रहा है दिल,
जो इस तरह आज ज़रा ख़ामोश और मुरझाया है।
क्यूँ परेशां हो रहे हो देख दर्द उनका जनाब,
जिनका घर कल रात को तुमने उजाड़ा है।